अनूपपुर। जिलेभर में शनिवार को पारंपरिक आस्था और उल्लास के साथ कजलियां पर्व मनाया गया। ग्रामीण अंचलों से लेकर नगर क्षेत्रों तक इस पर्व का विशेष उत्साह देखने को मिला। प्रातः से ही महिलाएं और युवतियां रंग-बिरंगे परिधानों में सज-धजकर कजलियां लेकर पूजा स्थलों व नदी-तालाब के घाटों पर पहुंचीं। विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर काजलियों को नदी में प्रवाहित किया गया और देवी-देवताओं को अर्पित कर परिवार, समाज व गांव की सुख-समृद्धि तथा अच्छी फसल की मनोकामनाएं की गईं।
कजलियां पर्व, जिसे श्रावण माह के अंतिम सोमवार या भादो माह की अमावस्या के आसपास मनाया जाता है, मुख्य रूप से कृषि कार्यों से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि इस दिन काजलियां अर्पण करने से वर्षभर खेतों में हरियाली बनी रहती है और अनाज की भरपूर पैदावार होती है। महिलाएं उपवास रखकर पूजा करती हैं और पारंपरिक गीत गाते हुए कजलियों को जल में प्रवाहित करती हैं।
जिले के विभिन्न गांवों—अमलाई,जैतहरी, पुष्पराजगढ़, कोतमा, भालूमाड़ा, अमलाई, बेनीबारी, तथा अमरकंटक क्षेत्र के साथ-साथ शहडोल और उमरिया सीमावर्ती अंचलों में भी यह पर्व पूरे हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुआ। कई स्थानों पर महिलाओं और बालिकाओं ने समूह में लोकगीत व नृत्य प्रस्तुत कर पर्व की शोभा बढ़ाई।
स्थानीय बुजुर्गों ने बताया कि कजलियां तैयार करने के लिए हरे-भरे पौधों को मिट्टी के छोटे पात्रों या पत्तों में बोया जाता है, जिन्हें सात से नौ दिनों तक घर में पूजाघर में रखकर सींचा जाता है। अंतिम दिन जल में विसर्जन कर इन्हें प्रकृति को समर्पित किया जाता है। इस अवसर पर नदी-तालाब के घाटों पर मेले जैसा माहौल रहा, जहां श्रद्धालु पूजा के साथ-साथ सामाजिक मेलजोल का भी आनंद लेते नजर आए।




