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पद का दुरुपयोग कर रहे मंडल के अधिकारी — नहीं थम रहा श्रमिकों का शोषण

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अनूपपुर। ज्ञानेंद्र पाण्डेय
अमरकंटक ताप विद्युत गृह केंद्र, चचाई में श्रमिकों के अधिकारों का खुलेआम हनन हो रहा है। मध्य प्रदेश सरकार जहां श्रमिकों को सशक्त बनाने के लिए योजनाएं, हेल्पलाइन और श्रम कानून लागू कर रही है, वहीं इसी शासन के अधीन काम कर रहे कुछ अधिकारी इन प्रयासों को मुँह चिढ़ा रहे हैं। श्रमिकों का शोषण, वेतन में कटौती और महिला मजदूरों से जबरन घरेलू काम करवाना अब आम बात बन चुकी है।

महिला श्रमिकों से घरेलू काम — नाम प्लांट में, काम अधिकारियों के घरों में!

जानकारी के अनुसार, कई महिला श्रमिकों के नाम ताप विद्युत गृह केंद्र में दर्ज हैं, लेकिन असल में उन्हें अधिकारियों के घरों में झाड़ू-पोंछा, बर्तन और बच्चों की देखभाल में लगाया जा रहा है।
इनका मासिक वेतन नियमित रूप से मंडल खाते से जारी होता है, लेकिन श्रम का उपयोग निजी हितों के लिए किया जा रहा है।
यह केवल श्रम कानूनों का उल्लंघन नहीं, बल्कि महिलाओं के साथ गरिमा और मानवाधिकारों का सीधा अपमान है।

हाजिरी और वेतन में हेराफेरी — किसकी है यह सुनियोजित साज़िश?

सूत्रों के अनुसार, मजदूरों को महीने में 26-27 दिन कार्य करने के बावजूद ₹1000 तक की कटौती झेलनी पड़ती है।
जब वे शिकायत करते हैं, तो उन्हें सिर्फ एक जवाब मिलता है:
“जितनी हाजिरी लगी है, उतना ही भुगतान होगा।”
परंतु ना ही हाजिरी शीट पर हस्ताक्षर करवाए जाते हैं, और ना ही वेतन पर्ची दी जाती है।
इससे स्पष्ट है कि या तो ठेकेदार की ओर से हेराफेरी हो रही है या फिर कंप्यूटर ऑपरेटर और अधिकारी गठजोड़ कर बैठे हैं।
यह एक ऐसा नेटवर्क बन चुका है जहां शोषण, भ्रष्टाचार और डर से मजदूरों की आवाज़ को कुचल दिया जा रहा है।

“धीरे बोलो, कोई सुन न ले…” — कानून की आड़ में अनदेखा अत्याचार

मजदूरों को नियम-कानून की बातें केवल भाषणों और नोटिस बोर्ड पर ही सुनाई देती हैं।
असलियत यह है कि
ना उन्हें सैलरी स्लिप दी जाती है,
ना उपस्थिति रजिस्टर पर हस्ताक्षर का मौका मिलता है,
और अगर किसी ने न्याय की बात की, तो उसे गेट के बाहर निकाल दिया जाता है।
यह वही तानाशाही शैली है जो कभी ईस्ट इंडिया कंपनी अपनाती थी — अपने कानून खुद बनाकर गरीब श्रमिकों का शोषण।
आज भी यही रवैया अपनाया जा रहा है, पर आधुनिक जाल और सफेदपोशों की आड़ में।

कौन चला रहा है ये काली सत्ता?

स्थानीय लोगों का दावा है कि इस पूरे भ्रष्टाचार का संचालन एक ऐसा व्यक्ति कर रहा है जो खुद को क्षेत्र का बाहुबली और राजनेताओं का “खास” बताता है।
वह अपने राजनीतिक संबंधों के बल पर अधिकारियों और ठेकेदारों को अपने अनुसार चलाता है।
कहने को यह व्यक्ति कोई पदाधिकारी नहीं, लेकिन उसका दबदबा कंपनी में एक छाया प्रशासन की तरह काम कर रहा है — और मजदूरों की सबसे बड़ी दुश्मनी बन चुका है।

मुख्यमंत्री जी, क्या यही है श्रमिकों के सम्मान का ‘विकास मॉडल’?

मोहन सरकार ने श्रमिक कल्याण के लिए कई योजनाएं चलाई हैं। लेकिन जब उन्हीं की मंडल इकाइयों में श्रमिकों के अधिकारों का चीरहरण हो रहा है, तो सवाल बनता है —
क्या यह सब राज्य सरकार की जानकारी के बिना हो रहा है?
या फिर कोई सत्ता-प्रेरित मौन स्वीकृति इस अन्याय को बढ़ावा दे रही है?

तीखे सवाल जो जवाब माँगते हैं:
क्या महिला मजदूरों को उनके साथ हुए अन्याय का न्याय मिलेगा?
क्या वेतन में कटौती और बिना अटेंडेंस के भुगतान की गड़बड़ी की जांच होगी?
क्या सफेदपोश ‘बाहुबलियों’ पर कार्रवाई होगी या वे यूं ही खुलेआम कानून तोड़ते रहेंगे?

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