चचाई, अनूपपुर |
जब व्यवस्था ने मुँह मोड़ लिया, तब एक समाजसेवी ने हाथ बढ़ाया।
आर.सी. इंग्लिश मीडियम स्कूल, चचाई के छात्र युग वर्मा के जीवन में एक ऐसा ही मोड़ आया, जब उसकी आगे की पढ़ाई महज़ कुछ हज़ार रुपये की कमी के कारण अधर में लटक गई थी। निर्धन दलित वर्ग से आने वाले युग वर्मा ने कक्षा 1 से 8 तक की शिक्षा सरकार की आर.टी.ई. योजना के तहत पूरी की थी। अब वह कक्षा 9वीं में दाखिला लेना चाहता था, परंतु स्कूल की ₹10,000 की एडमिशन फीस उसके माता-पिता के बस से बाहर थी।
आशा लेकर उन्होंने स्कूल के प्राचार्य व प्रबंधन से गुहार लगाई — कि सिर्फ एडमिशन फीस माफ कर दी जाए, ट्यूशन फीस वे हर माह भर देंगे। मगर उत्तर मिला: “फीस तो पूरी भरनी ही पड़ेगी।”
जब व्यवस्था ने संवेदनहीनता दिखाई, तब समाजसेवी व शिक्षाविद् श्री जितेन्द्र सिंह ने न केवल युग की व्यथा सुनी, बल्कि उसे उसका हक भी दिलाया। उन्होंने स्वयं स्कूल जाकर युग की एडमिशन फीस व अप्रैल से जुलाई तक की ट्यूशन फीस का भुगतान किया, और यह सुनिश्चित किया कि एक होनहार छात्र सिर्फ पैसे के अभाव में पढ़ाई से वंचित न हो।
इस पूरे घटनाक्रम ने यह उजागर कर दिया कि जिस व्यवस्था से दलितों को सहानुभूति की अपेक्षा थी, वह महज औपचारिकता में उलझी हुई है। युग वर्मा के माता-पिता ने आभार व्यक्त करते हुए कहा—
“जो लोग अम्बेडकर के नाम की माला जपते हैं, उन्होंने हमारी एक न सुनी। लेकिन एक व्यक्ति जिसने न नारे दिए, न मंच सजाया, उसने हमारे बेटे को फिर से कलम और किताबों से जोड़ दिया। यही असली सामाजिक न्याय है।”
आज युग वर्मा फिर से अपनी पढ़ाई जारी रख सका है, और उसके सपनों को फिर से पंख मिले हैं।
इस छोटे से कदम ने न केवल एक बच्चे का भविष्य संवारा, बल्कि पूरे समाज के लिए यह संदेश छोड़ा कि
“वास्तविक सामाजिक सेवा सत्ता से नहीं, संवेदना से होती है।”
इस पहल की पूरे क्षेत्र में सराहना हो रही है। जितेन्द्र सिंह जैसे लोग आज के समाज के लिए नायक हैं—जो बिना प्रचार के, असली ज़रूरतमंद के साथ खड़े होते हैं।
