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गुरु पूर्णिमा पर अमरकंटक में उमड़ा श्रद्धा और भक्ति का सागर, आश्रमों में हुए भव्य आयोजन

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अमरकंटक, 10 जुलाई —
मध्यप्रदेश के पवित्र तीर्थस्थल अमरकंटक में इस वर्ष गुरु पूर्णिमा का पर्व पारंपरिक श्रद्धा, भक्ति और उल्लास के साथ मनाया गया। जहां एक ओर नर्मदा नदी के उद्गम स्थल पर दूर-दराज़ से आए श्रद्धालुओं, संतों और पर्यटकों की भीड़ उमड़ी, वहीं श्री कल्याण आश्रम, श्री मार्कंडेय आश्रम और श्री शांति कुटि आश्रम सहित विभिन्न आश्रमों में दिव्य और आध्यात्मिक आयोजन संपन्न हुए।

सुबह से ही अमरकंटक के मंदिरों, घाटों और आश्रमों में विशेष पूजन, हवन, भजन-कीर्तन और सत्संग का आयोजन शुरू हो गया। श्रद्धालुओं ने पहले नर्मदा स्नान कर पुण्य लाभ अर्जित किया और फिर अपने-अपने गुरुओं की पूजा कर आशीर्वाद प्राप्त किया

श्री कल्याण आश्रम में पूज्य तपस्वी बाबा कल्याण दास जी महाराज के सान्निध्य में गुरु पूजन और प्रवचन आयोजित हुआ। प्रवचन में गुरु की महिमा का उल्लेख करते हुए श्रद्धालुओं को संयम, सेवा और साधना के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी गई। आयोजन के अंत में विशाल भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया।

श्री मार्कंडेय आश्रम में आचार्य महामण्डलेश्वर रामकृष्णानंद जी महाराज ने गुरु शिष्य परंपरा की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि “गुरु वही दिव्य शक्ति हैं, जो अज्ञान रूपी अंधकार को चीरकर आत्मज्ञान और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं।” उन्होंने जीवन में सच्चे मार्गदर्शक के महत्व को रेखांकित किया और उपस्थित जनसमूह को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं दीं।

श्री शांति कुटि आश्रम में ध्यान, साधना एवं गुरु वंदना से वातावरण शांत, आध्यात्मिक और दिव्य बन गया। देशभर से आए साधकों ने इस आयोजन में भाग लिया। गुरु भक्ति गीतों और भजन संध्या ने सभी को भावविभोर कर दिया।

गुरु पूर्णिमा के इस अवसर पर पूरे अमरकंटक का वातावरण भक्ति और अध्यात्म से ओतप्रोत हो गया। आश्रमों, मंदिरों और घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिली। भक्तों ने अनुशासन और श्रद्धा के साथ आयोजन में भाग लिया।

स्थानीय प्रशासन और आश्रम प्रबंधन द्वारा श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए सुरक्षा, स्वच्छता और व्यवस्था के विशेष इंतजाम किए गए थे। पूरे आयोजन को न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया।

गुरु पूर्णिमा पर अमरकंटक के दिव्य और भव्य आयोजनों ने एक बार फिर यह सिद्ध किया कि गुरु-शिष्य परंपरा आज भी भारतीय संस्कृति की आत्मा है, जो जन-जन में श्रद्धा, सेवा और आत्मिक अनुशासन का संचार करती है।

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