अमरकंटक । भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव पर अति प्रसन्न खुशी से सराबोर नंद बाबा ने अपने राज्य के सभी लोगों को उनके मुंह मांगा दान किया यहां तक की 2 लाख गायों का जान उन्होंने स श्रृंगार करा कर दिया जो जैसा मांगता गया उसे वैसा ही दान देते रहे। भगवान जो उनके घर जन्मे थे । जो सुख आनंद माता देवकी एवं यशोदा को भगवान ने नहीं दिया वह सुख की प्राप्ति मौसी पूतना को मिला मां समान पूतना भले ही राक्षस कुल की थी भगवान को उसने स्तनपान कराया फल स्वरुप भगवान ने उसे अपने परमधाम भेजा जो भगवान को थोड़ा सा भी चाहा भगवान उसका पूरा फर्ज निभाते हैं। वासुदेव जी महाराज ने गर्गाचार्य जी को भेज कर अपने पुत्र का नामकरण करने हेतु भेजा। यशोदा मैया एवं रोहिणी माता ने बाबा गर्गाचार्य जी की परीक्षा लेनी चाहिए एक दूसरे का पुत्र रखकर आई गर्गाचार्य जी तुरंत जान गए सबको आकर्षित करने वाले पार ब्रह्म परमेश्वर का नाम कृष्ण रखा तथा बलशाली बालक का नाम बलराम रखा दोनों का नामकरण संस्कार गौशाला में हुआ । गर्गाचार्य जी महाराज ने कहा कि वैसे तो इनका हजारों नाम होगा । नाम का प्रभाव व्यक्ति पर होता है नाम बहुत ही सोच समझकर रखा जाना चाहिए तथा नामकरण जानकार महापुरुष ब्राह्मण से कराना चाहिए। कुछ भी नाम नहीं रखना चाहिए जिसका मतलब आशय हो वही नाम रखा जाना चाहिए। उक्त आशय के भावपूर्ण उद्गार श्रीमद् भागवत महापुराण के छठवें दिन मृत्युंजय आश्रम के विशाल सभा हाल में भागवताचार्य पं.सागर मिश्रा उपस्थित भक्त श्रद्धालुओं को सुना रहे थे। पंडित सागर मिश्रा श्रीमद् भागवत महापुराण कथा में आगे कहा कि व्यक्ति को अपना लक्ष्य ताड़ पेड़ की तरह ऊंचा और बड़ा रखना चाहिए इसीलिए वह ऊंचा होता है वहीं आम का वृक्ष की शाखाएं यहां वहां बढ़ जाती हैं इसके चलते वह ऊंचा बड़ा नहीं हो पता इससे सीख लेकर व्यक्ति को अपना सर्वोच्च लक्ष्य रख कर आगे बढ़ना चाहिए तभी वह आगे बढ़ सकेगा । पंडित मिश्रा ने भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का चित्रण करते हुए कहा कि माताएं मक्खन ऊपर सीकर में बांधती रही भगवान अपने शखाओ के साथ उसे भी चोरी कर खाते रहे माताएं उस पर घंटी बांधती रही हैं ताकि चोरी होने पर घंटी बाजे जब तक सखा मक्खन खाते घंटी नहीं बजती पर भगवान के मक्खन खाते ही घंटी बज उठती भगवान कृष्ण ने पूछा तुम मेरे खाते ही घंटी क्यों बच जाती हो घंटी ने कहा हे भगवन भगवान के भोग लगे पर घंटी नहीं बजे तो क्या मतलब हुआ । उन्होंने कथा में आगे कहा कि भगवान राम एवं भगवान कृष्ण दोनों एक ही हैं दोनों का श्यामल वर्ण है भगवान राम के नयन शांत स्वभाव के हैं तो वही भगवान कृष्ण के नयन चंचल भरे हैं । संतान भी पितृ देवता की कृपा से होते इसलिए पितृ देवताओं को मनाना चाहिए पूजना चाहिए स्थान देना चाहिए उनकी कृपा से सब कुछ अच्छा होता है इसलिए पितृ देवो भव कहा गया है ।
